वो बचपन की गली वो ईंटों से बिछा हुआ लाल रस्ता एक साइकल पे लदा कैन्वस का बस्ता अंगीठियों से उठता कोयले का धुआँ पीपल के नीचे वो छोटा सा कुआँ रुई की धुनाई की वो टन-टन आवाज़ रेडियो पर छिड़ता कोई फ़िल्मी साज़ वो हर एक लम्हा , आज भी आबाद है वो बचपन की गली , मुझे अब भी याद है II वो छतों से उड़तीं पतंगें हज़ार वो खिलोनों के ठेले , वो चलते बाज़ार वो लट्टू , वो कंचे , वो गिल्ली और डंडा वो मक्खन सफ़ेद , डबल रोटी और अंडा वो चिट्ठी के डिब्बे और डाकिये की घंटी वो पड़ोसी का बेटा और पतली सी संटी वो लड़का , अफ़सोस , आज भी बर्बाद है वो बचपन की गली , मुझे अब भी याद है II पुराने कपड़ों से होता बर्तन का व्यापार वो मूँगदाल की बड़ियाँ , वो पापड़ अचार एक काला सा फ़ोन , जो सबका था यार वो ट्रंक कौल के दिन और बुलावे हज़ार हम लोग , रामायण , नुक्कड , चित्रहार जब चैनल था एक , एकजुट परिवार वो दिन वापस आएँ , बस यही फ़रियाद है वो बचपन की गली , मुझे अब भी याद है II चारपाइयों पे रोज़ लगती मच्छरदानी उन सूती महलों में नानी की कहान
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