मैं... और मेरा स्मार्टफ़ोन मेरा फ़ोन आजकल, कुछ ज्यादा ही स्मार्ट हो गया है। कल तक जो सिर्फ बजता था काला सा कोने में सजता था होता था हर घर मे सिर्फ एक आज उस से भरी हुई है हर जेब यह जादू है या कोई फरेब? अब इसके बिना हर शख्स अधूरा सोचो, यह अच्छा हुआ के बुरा? मदद की चीज़ आज मजबूरी बन गई है घबराहट और पसीने से वो पूरी सन गई है यह बजे, तो दिलों की धड़कने बढ़ जाती हैं और बैटरी मरे, तो साँसे ही रुक जातीं हैं और ऐसा क्यूँ ना हो मेरे भाई बैंक अकाउंट से लम्बे नंबर, कोई याद रख भी तो कैसे पाए? हाए..! कल तक मुट्ठी में आने वाली चीज़, आज सर चढ़ के बोलती है जीवन आसान करने की मशीन, अब लाइफ़ में टेन्शन घोलती है। कल के दस्तूर, कब के मर चुके हैं क्यूंकि, अलफ़ाज़ याद करने के दौर, Thanks to auto-correct, अब गुज़र चुके हैं। आजू-बाजू देखो, सारी गर्दनें झुक गईं हैं एक वक़्त, नज़रों से होती थी बातें, अब गुफ्तगू ही रुक गई है। बढ़ गए है कॉंटैक्ट्स,