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WOH BACHPAN KI GALI

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वो बचपन की गली वो ईंटों से बिछा हुआ लाल रस्ता एक साइकल पे लदा कैन्वस का बस्ता अंगीठियों से उठता कोयले का धुआँ पीपल के नीचे वो छोटा सा कुआँ रुई की धुनाई की वो टन-टन आवाज़ रेडियो पर छिड़ता कोई फ़िल्मी साज़ वो हर एक लम्हा , आज भी आबाद है वो बचपन की गली , मुझे अब भी याद है II वो छतों से उड़तीं पतंगें हज़ार वो खिलोनों के ठेले , वो चलते बाज़ार वो लट्टू , वो कंचे , वो गिल्ली और डंडा वो मक्खन सफ़ेद , डबल रोटी और अंडा वो चिट्ठी के डिब्बे और डाकिये की घंटी वो पड़ोसी का बेटा और पतली सी संटी वो लड़का , अफ़सोस , आज भी बर्बाद है वो बचपन की गली , मुझे अब भी याद है II पुराने कपड़ों से होता बर्तन का व्यापार वो मूँगदाल की बड़ियाँ , वो पापड़ अचार एक काला सा फ़ोन , जो सबका था यार वो ट्रंक कौल के दिन और बुलावे हज़ार हम लोग , रामायण ,  नुक्कड , चित्रहार जब चैनल था एक , एकजुट परिवार वो दिन वापस आएँ , बस यही फ़रियाद है वो बचपन की गली , मुझे अब भी याद है II चारपाइयों पे रोज़ लगती मच्छरदानी उन सूती महलों में नानी की कहान

THE SEA SEES ME

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THE SEA SEES ME   As I sit by the shore Waves come, waves go Like a rhythmic pulse They heave and convulse As a tangerine sun Completes a home run And begins its descent Looking tired and spent Into the calm embrace Of a slumbering sea That I see! A warmth engulfs Relaxing my pulse While the saline scent In the breeze present Leaves a hint on my lips As some cargo ships Hit the line of horizon In tandem with the sun Retiring for the day Painting everything grey Like a perfect screenplay! I sigh in wonderment At this diurnal event That I’ve seen so often Yet my eyes soften As I rise to my feet Dusting sand from my pleats And see faceless silhouettes Float past as vignettes A seagull follows My footprints hollow And a wave beckons! I stop and I see The cradling of the sea Tumultuous yet calm A sublime scenic balm Mirror to my soul Shattered, yet whole Almost say to me There’s no master key